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सन्नाटा - Punam Bhatnagar (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

सन्नाटा

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सन्नाटा

अक्सर हमें डर लगता था सन्नााटे से पर आज कल न जाने
क्यु ये सन्नाटा ही पसंद आता है अक्सर में कोना खोजती हु की कब अपने काम से छूट कर में आराम से किसी कोने में बैठ जाऊँ और बहुत सारी बातें याद करू हाँ मुझे सन्नाटा पसंद हैं
पहले जरूर डर लगता था अकेलेपन से पर अब तो कई बार इंतज़ार करती हू की घर में कोई ना हो या रात को जब सब सो जाए तो मे आराम से सन्नाटे में चाय के साथ कुछ पुरानी बातें याद करू हाँ अब मुझे सन्नाटा पसंद हैं

पुनम

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