कविताअतुकांत कविता
*परिवार*
जहाँ हर दिवस है त्यौहार
बहती है उत्सव की बयार
ममता अपनत्व का संचार
बरसता रहता सर्वदा प्यार
इसी को कहते हैं परिवार
जहाँ निभता हर किरदार
रिश्ते ना होते हैं तार तार
साँझा होते सब सरोकार
नहीं किसीकी भी दरकार
इसी को कहते हैं परिवार
दादाजी की चले फटकार
दादी की मीठी सी मनुहार
चाचू बने रहते हैं पहरेदार
चाची की चाहतें बेशुमार
इसी को कहते हैं परिवार
जहाँ सोते एक साथ चार
किस्से कहानियां हैं शुमार
सुन लेते दादी की पुकार
सारे बन जाते तीमारदार
इसी को कहते हैं परिवार
एक कमाता है सब खाते
सब बच्चे अपने हैं, कहते
तेरा मेरा नहीं,अपना सब
खुशी के तारे जगमगाते
इसी को कहते हैं परिवार
सरला मेहता