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हर बात में राजी - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

हर बात में राजी

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हर बात में राज़ी

अनाया जब से मल्टी में रहने आई है सभी की आँख की किरकिरी बनी हुई है।वह अति आधुनिका के साथ सुसंस्कृता भी है।" सुबह की गई शाम को आती है।जाने कहाँ जाती है।", महिलाओं की कानाफूसी शुरू। थोड़ी ही देर में उसके फ्लेट से आरती व घंटी की मधुर ध्वनि सुन खुसुर पुसुर का सिलसिला फिर चल पड़ा।" ये लो,सौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज़ को चली।" जितने मुंह उतनी बातें। किन्तु एक बात तारीफ़ की यह कि सबके संकट में अनाया हाज़िर। सामान्य दवाई या घरेलू सामग्री,पढ़ाई के बारे में जानकारी या किसी अंकल के मोबाइल में खराबी
सबका इलाज़ अनाया के पास।
शाम के वक्त छत पर अपने अपने गुबार निकालने महिलाओं का जमघट लग ही जाता है।एक बोली,"ये नई लड़की,पता नहीं ब्याहता है कि कुँवारी।"दूसरी आगे जोड़ती है, "रोज सजधज कर कहाँ जाती,भला किसे पता?"
तीसरी ने नमक मिर्च लगाया,
" करती होगी नौकरी या किसी से नैना लड़ गए होंगे।"
ये सारी गुफ़्तगू सीढ़ियों से सुन रही अनाया सबके सामने प्रकट हो नम्रता से जवाब देती है,"आप सबको जानना है न मेरे बारे में तो सुनिए, मैं तलाकशुदा हूँ,नौकरी करती हूँ और मेरी आठ साल की बेटी होस्टल में हैं।और हाँ ट्यूशन भी करती हूँ।"
वह रुंवासी हो आगे जोड़ती है,"समय बिताने के लिए ट्यूशन भी करती हूँ।आप मुझे पसंद करे या ना करे,आपकी मरज़ी।आप मेरी बड़ाई करो तो ठीक,बुराई करो तो और भी अच्छा।" अगले दिन से ही ट्यूशन के लिए बच्चों की लाइन लग गई।
सरला मेहता
इंदौर

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दादी की परी
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