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होश - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

होश

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*होंश*

गुरदासपुर गाँव में आज कोरोना से मुक्ति के उपलक्ष में जश्न मनाया जा रहा है। गत कहर के दौरान बहुत कुछ खोया और पाया भी। इस गाँव के मुखिया दारजी के प्रयासों से यह एक आदर्श गाँव बन गया।
गुरुद्वारा को क्वारेनटाइन सेंटर बना दिया। शुरुआती लक्षण दिखते ही डॉ व दवाइयाँ उपलब्ध। दारजी की गाड़ी बनी एम्बुलेंस गम्भीर मरीजों को शहर ले जाती। पैसों की कोई चिंता नहीं। तम्बुओं में लंगर का शुद्ध खाना महिलाएँ शबद कीर्तन गाते बनाती। हाँ, नीबू अचार व आँवले का मुरब्बा भोग जैसा खाओ। गुड़ सौंठ तमाम मेवे डला कड़ा प्रसाद का दोना भी पाओ।
सतवंत कौर, अरे दारजी वाली भरजाई जी ख़ुद लौंग कालीमिर्च अदरक की चाय बना दिन में तीन बार पिलाती।
सुबह शाम कीर्तन के बाद व्यायाम प्राणायाम अनिवार्य था सबके लिए।
हाँ दो गज दूरी व सफ़ाई भी ज़रूरी। भई, बिना मास्क के दिखे नहीं कि
मशीन पर एक घण्टे बैठ मास्क सिल कर गरीबों को बांटों।
आज सब लोग गुरुद्वारे के सामने नाच रहे हैं, भंगड़ा पा रहे हैं। और होंश गंवा मास्क उछाल रहे हैं। तभी बच्चों की टोली आकर एक एक मास्क उठा सबको थमाने लगी, " अरे, जोश में होंश मत खोओ। ये राक्षस दुबारा आ गया ना। हमारी प्रार्थना है आप सभी से ऐसे भीड़ मत करो, नियमों को तोड़ने की सज़ा आप जानते हो।ज़िन्दगी मौत न बन जाए सम्भालो यारों,,,,।"
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित

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दादी की परी
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