कवितानज़्मअतुकांत कवितालयबद्ध कवितागजलअन्य
कभी यहां सोने की चिड़िया हुआ करती थी
जो स्वछंद वातावरण में विचरण किया करती थी,
तब ये देश भी वनप्रधान हुआ करता था
रोगरहित धनधान्य हुआ करता था।
अब न तो वो सोने की चिड़िया बची
स्वछंद वातावरण में भी जहरीली वायु घुली,
वनों की भी मनुष्यो के हाथों बलि चढ़ी
तब O₂ सिलेंडरो में बिकने लगी।
यही रही अगर हम मनुष्यों की चलन चाल
तो होगा हमारा भी बस वही हाल,
घुट घुट कर मरेंगे लेकर O₂ मिलने की आस
होंगे सबसे दूर, मां-बाप तकभी तब न होंगे पास।
समय भयंकर अब विपरीत चल रहा
बिन मौत के भी इंसान मर रहा,
तरस रहे हैं शुद्ध वायु लेने को सभी
मानो वो कटा जंगल हम पर हस रहा।
#HarshWords