कवितालयबद्ध कविता
नमन-साहित्य अर्पण एक पहल
आयोजन----------प्रतियोगिता
विषय--------------------चित्र
तिथि----------23/08/2020
वार-------------------रविवार
विधा-----लावणी छन्द में गीत
मात्राभार--------------16,14
#चित्र
दीन - हीन के ऊपर जूता,दूजा मानव थाम लिया।
घुटनों के बल नतमस्तक है,बातें झुककर मान लिया।।
जूता अपना दाब बढ़ाकर , सीना जोरी करता है।
घुटनों के बल दीन हीन है,नहीं मृत्यु से डरता है।।
दीन-हीन कमजोर बहुत है,अन्दर-अन्दर जान लिया।
दीन - हीन के ऊपर जूता,दूजा मानव थाम लिया।।
उड़ते नर जो आसमान पर,सबको ताव दिखाते हैं।
ऊँच - नीच का भेद मानकर,रुतबा आप बढ़ाते हैं।।
दूरी बनती आम मनुज से,खुद को ऊँचा मान लिया।
दीन - हीन के ऊपर जूता,दूजा मानव थाम लिया।।
अत्याचार करो मत मानव,हम सब भी तो मानव हैं।
रुतबा सदा दिखाने वाले , ऐसे नर तो दानव हैं।।
मनुज सामने बना विरोधी,साहस भरना ठान लिया।
दीन - हीन के ऊपर जूता,दूजा मानव थाम लिया।।
दिल में गन्दी सोच भरी है,अन्तर्मन में स्वारथ है।
ईर्ष्या द्वेष भरा है दिल में,भूल गया परमारथ है।।
जूते वाला है अभिमानी ,दूजा नर संज्ञान लिया।
दीन - हीन के ऊपर जूता,दूजा मानव थाम लिया।।
सोच मनुज की बदल रही है,मानवता भी घायल है।
नफरत की दीवार खड़ी कर,मानव लगता पागल है।।
दुबला पतला दिखता मानव,हाथों को है तान लिया।
दीन - हीन के ऊपर जूता,दूजा मानव थाम लिया।।
अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तर प्रदेश