कविताअतुकांत कविता
कहाँ गए वे दिन,,,,
*छुट्टियों के दिन व नानी का गाँव
चल पड़ी नीनू सखियों की टोली संग
हरी भरी वादियाँ, संकरी पगडंडियाँ
*अरे अरे ! ये रुनझुन क्यूँ खड़ी उदास
बनाकर रेलगाड़ी छुक छुक बोली
"मान भी जाओ, बन जाओ न इंजन
*मौज मनाती ये हिरनियों सी
कच्चे पक्के बेर इमली अमिया खाते
बरगद की शाखाओं पर लगी झूलने
*नाना का खेत कहाँ,क्या करे अब?
फ़िर क्या?जो मिले, बन गए काका
हरे ताज़े छोड़, रसीले गन्ने खूब खाए
*झरने से पानी पी बैठी सब थकी सी
खरगोश मोर परिंदों से बहला मन
लाठी थामे आए नाना, सहमी नीनू
*नाना ने झिड़का,"चलो खेत पर"
नानी ने खिलाई चूल्हे की रोटी व साग
नीनू व सखियों की आई जान में जान
सरला मेहता