कविताअतुकांत कविता
*फ़िर जीतेगा इंदौर*
ए मेरे प्यारे बहादुर इंदौर
मैंने बचपन से देखा है
तुझे हर झंझावात झेलते
युद्धकाल का ब्लेकआउट
दंगों कर्फ्यू के काले दिन
डेंगू चिकनगुनिया से रोग
अब ये कोरोना का कहर
तूने हराकर कर सबको
जीत का दिखाया जलवा
उड़ाते रहे मज़ाक़ लोग
पोहे जलेबी नमकीन का
पर यही सब खाते खाते
स्वच्छता में चोका लगाया
नं वन ही रहे अभी तक
हरियाली का आलम तो
मोह लेता है पर्यटकों को
और सड़कें,वाह भई वाह
गौरैया नहीं अब मेहमान
ए मेरे इंदौर यादकर फ़िर
वो सारे अच्छे प्यारे दिन
ये दौर भी निकल जाएगा
इस बार भी हारेगा नहीं तू
जीत का जश्न तू मनाएगा
पालन करेंगे आदेशों का
मास्क से श्रंगारित होकर
दूरियाँ रख घर में ही रहेंगे
हाँ, दिलों को जोड़े रहेंगे
मदद के हाथ बढाएंगे ही
कोई भूखा प्यासा ना रहे
तेरा मेरा नहीं,सब हमारा
रोज़ सांध्यबेला में क्यूँ न
याद करें परमपिता को
हम इंदौरियन्स मिलकर
दोहराएं यह नारा हम सब
यह दौर भी चला जाएगा
इंदौर फ़िर जीत जाएगा
सरला मेहता