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छत - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

छत

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छत,,,,,विषय

ये छत बड़ा मायने रखती है
जिसके सर पे छत, वो है धनवान
छत नहीं तो कुछ भी नहीं भाई
ये छत ही तो जोड़ती है दीवारों को
और बन जाता है एक घरौंदा
पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार के रहने का
बहुमंजिला घरों में अपनी छत कहाँ
बहु उपयोगी होती हैं ये छतें हमारी
ठंड में मिलाती सूरज से हमको
ठंडी हवाएँ देती हैं गर्मियों में
बच्चे खेले व उनके माँ बाप बतियाए
बड़ी पापड़ मिलबैठ बनाए सुखाए
अचार मुरब्बे खराब होने से बच जाए
शादी पार्टी-शॉर्टी जी भर के मनाए
नाचे गाए और जश्न खूब मनाएँ
और कोई टोकने वाला भी ना आए
बेरोकटोक पूरे मोहल्ले में घूम आए
चोरों को सहूलियत भी मिल जाए
पतंग उड़ाने या किसी बहाने से
प्रेमी प्रेमिका भी गुफ़्तगू कर आए
हम छत बनाएँ इतनी मज़बूत
कि कोई बंटवारा ही हो न पाएं
बंट भी जाए घर अगर भागों में
छत से ताकते दिल जुदा ना हो पाए
सरला मेहता

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