कविताअतुकांत कविता
*रिश्ता प्यार का*
*एक रिश्ता अनजाना
फ़िर भी पहचाना सा
बंद आँखों में समाया
इक सपना अधूरा सा
*फ़ासले हैं दूरियाँ के
हैं कई मजबूरियाँ
रूहानी रिश्ता ये
सदियों पुराना सा
*ख़्वाबों ख़यालों में
तन्हा से लम्हों में
मिलते रहते हम
फ़िर भी तुम जाने से
*साँसों की खुशबू का
एहसास अनछुआ सा
बसता फ़िज़ाओं में
छुआ सा लगता है
*चाहे जाओ तुम रंगून
लगा ना पाऊँ टेलीफून
बिन कहे बिन सुने
हर घड़ीएहसास पाऊँ
*जमाना दरम्याँ हमारे
चलता रहा टेढ़ी कुचालें
रुहानी राहों पे फ़िर भी
पहरा कोई लगा न पाया
ये रिश्ता है प्यार का
जमानेवाले इसे इश्क़ कहते हैं
सरला