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बूढ़ी अम्मा - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

बूढ़ी अम्मा

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बूढ़ी अम्मा

शीतला सप्तमी होने से सास बहु नहा धोकर रात में ही रसोई में जुट जाती हैं।पूड़ी सब्ज़ी दही बड़े गुलगुले आदि भोग के लिए अलग रख दिए हैं। नौकरी पेशा बहु भलीभांति सासु माँ के आदेशों का पालन करती है। पिछली बार चुन्नू को चेचक के प्रकोप से देवी माँ ने ही बचाया ,ऐसा माजी का कहना था। बहु पूजा की थाल वगैरह तैयारियां कर लेती है ताकी बच्चे भी प्रसाद लेकर स्कूल जा सके।फिर भी सासू माँ याद दिलाती हैं," चना दाल भिगोना व दही ज़माना मत भूल जाना।दीया ठंडा ही रखना।याद है डॉ भी चेचक होने पर कमरा ठंडा रखने को कहते हैं।" हाँ माँ,आप हर साल दुहराती हैं,अब मैं पक्की हो गई हूँ।"बहु आश्वस्त करती है।
सुबह सवेरे बहु लाल चूनर ओढे ,पूजा की थाल लिए तैयार खड़ी है।सासु माँ बड़बड़ाती है,"मुई बरसात को भी आज ही आना था।" तभी सामने से पेट पीठ दोनों एक,,,लकड़ी टेकती बूढ़ी अम्मा दिखाई देती है।सासु माँ पूछ बैठती है,"भरी बरसात में कहाँ चली ?"अम्मा थरथराते हुए बोली," अरे माजी,जब से बेटे ने घर छोड़ा,बहु ही मेरा व पोते का पेट पालती है।आज बहु बुखार से तप रही है।सोचा मैं ही कुछ बासी कूसी का जुगाड़ करूँ।" सास बहू ने आँखों ही आँखों में इशारे किए।और बहु झटपट सब भोग सामग्री पैक कर अम्मा को थमा देती है।और हाँ अदरक की गरमागरम चाय पिलाना भी नहीं भूलती।सासु माँ हाथ जोड़ते हुए बोलती है,
" हे शीतलामाता,आप साक्षात हमारे घर पधारी।सबकी रक्षा करना माँ।"
सरला मेहता

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