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कुछ कुछ होता है - Ajay Goyal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

कुछ कुछ होता है

  • 293
  • 4 Min Read

#कुछ कुछ होता है...

एक दिन आधी रात को
मैंने देखा एक सपना
आया सपने में कोई अपना
आकर बोला-
गाँव की गलियों में
नदिया किनारे,
पेड़ों की छाँव में,
कर रही है वो तेरा इन्तजार...

सुबह होते ही चल दिए हम,
पैदल-पैदल...
गलियों से गुजरते,
पगडंडियों से निकलते,
'चलते-चलते'
मीलों दूर,
उसके गाँव में पहुँचे...

ढूंढते-ढूंढते...
पहुँचे उसके घर,
और... पहुँचते ही...
उसका दरवाज़ा खटखटाया
खोलते ही दरवाज़ा उसके,
हमने कहा-
'बाजीगर' मैं बाजीगर,
दिलवालों का मैं दिलबर,
मेरा 'दिल तो पागल है',
तू ही मेरी काजल है...

सुनते ही इतना-
बात लगा ली उसने 'दिल से',
उसके भाईयों ने पीटा,
इतना मुझे मिल के,
कि सारा बदन दुखता है,
रात में अकेले में लगता है 'डर'
टीस अब भी उठती है,
और अक्सर-
' कुछ कुछ होता है।'

अजय गोयल
मौलिक व अप्रकाशित रचना
गंगापुर सिटी (राजस्थान)

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Narendra Singh

Narendra Singh 4 years ago

अच्छा है भाई।

Ajay Goyal4 years ago

धन्‍यवाद

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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