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जूती - शालिनी दीक्षित (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

जूती

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चित्र प्रतियोगिता 2020
#23 अगस्त

जूती
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कब तक समझते रहोगे तुम (समाज)
हमे पांव की जूती?
कब तक रौंदते रहोगे
पैरों तले हमको?
हमारे अंदर भी
आग की कमी नही।
गर मिल जाये हमको
किसी का थोड़ा सा साथ,
तुम्हारे इरादों को
खाक कर देने का
मदद रखते है हम।
बस थोड़ी सी हिम्मत
और एक जुटता,
तुम्हारे इरादों को
माटिया मेट
कर देने के लिए काफी है।

शालिनी दीक्षित
मौलिक

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