कहानीएकांकी
*महा दरबार*
महामारी के चलते मानव घर में बंद। और सारे पशु पक्षी वनचर जीव जंगल के साथ शहर में भी मंगल मनाने लगे। शेरू दादा ने महादरबार का आयोजन किया। सब सजे धजे आ बिराजे।
तर्रार खरगोश, दादा को हार पहनाने ऊपर देखने लगा । तेज़ धूप से उसकी लाल आँखे चुंधियाने लगी। झट से मौकापरस्त लोमुबेन ने पलाशी छाता नन्हे तर्रार पर तान दिया। यह देख कालू गोरु लंगूर खिखियाने लगे।
***गजराज नाना ने लंबी नाक लहराते प्रणाम कर तंच कसा,
" क्षमा करें महाराज, सलाहकार होने के नाते बताना चाहता हूँ कि हमारे जंगल में भी अब राजनैतिक कुचालों ने डेरा जमा लिया है। यहाँ
चमचागिरी का असर दिखने लगा है।"
**शेरू दादा ने समर्थन कर बारी बारी से हरेक का मुआयना किया। फ़िर रोबीली आवाज़ में घोषणा की,
" साथियों, देख रहा हूँ, आजकल मानवी चालें व तिकड़में जंगल वालों में भी आ गई है।पर हाँ ताल तलैया का पानी भी कांच सा साफ़ हो गया है।"
***टोपी लगाए रक्षामंत्री भेडु भाई शान से बोले, "पूरी चौकसी करता हूँ हुजूर, मज़ाल कि कोई पानी गंदा करे।"
नींद से जागे गदगदी चाल का जलवा दिखाते मगर मामू आ गए, " भोत बढ़िया काम हुआ जी। पर जरा आपका जंगल भी फ़ैलाओ। देखो भई, हम सबका फ़ायदा देखते हैं। इन इंसानों से तो प्रभु हमें दूर ही रखे।"
सब तालियाँ बजाने लगे।
तभी रोती बिलखती घायल हिरनियों का झुंड आ पहुँचा, " हमारी रक्षा करो, सरकार। हम व हमारी तरह की सभी जनानियाँ संकट में हैं। हमारे नियम के अनुसार अपनी बिरादरीवालियों से नैनमटक्का करना। लेकिन यह बलात्कार शब्द हमारे समाज में भी आ गया है। हमारी सुरक्षा के ख़ातिर कुछ करिए। सख्त कदम उठाए बिना ये दुष्ट पापी मानेंगे नहीं।"
*** शेरू दादा दहाड़े, " हमने यह काम चितूराम, श्वानश्री आदि को सौपा था। अबसे म्याऊँ जिजियाँ, उलूक बाबा व कबरबिज्जू काका जासूसी कर हमें बताएँगे। अपराधियों को सरेआम मारा जाएगा। वही आपकी दावत होगी।"
तभी ची ची करते मिट्ठू, गौरैया, बुलबुल आदि सभी आकर गाने लगे, "पँछी बनो उड़ते फिरो मस्त गगन में,,,,,।"
सरला मेहता