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आपका मंथन , मेरा सृजन - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

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आपका मंथन , मेरा सृजन

  • 283
  • 21 Min Read

*आपका मंथन
मेरा सृजन*

😢👍🏼जल्दी का काम शैतान का, यह तो सबने सुना होगा। किन्तु इस आभासी संसार ने सबको चकरी बना दिया है।
मेरी सहनाम सखी सरला शर्मा जी की प्रत्येक पोस्ट पढ़ती हूँ। समझ ना आए तो दुबारा दिमाग़ी घोड़े दौड़ाती हूँ। वास्तव में स्वार्थ यह रहता है कि
मेरे लेखन के लिए कोई उम्दा पँच पंक्ति मिल जाए।
अभी ताज़ा पोस्ट में पढ़ा, *आपन मुख तुम्ह आपनि करनी, बार अनेक भाँति बहु बरनी*
आत्मश्लाघा आत्ममुग्धा शब्द अंदर तक बेध गए।
इस संदर्भ कहना चाहती हूँ कि फेसबुक पर हमारे कई मित्र बन जाते हैं। कई बार पोस्ट बगैर पढे धड़ाधड़ एकलव्य का अंगूठा व इमोजी जी चिपकाते जाते हैं। कई बार होता यह है कि शेयर करने में पोस्ट अधूरी चली जाती है। और उस पर 'बहुत उम्दा' जैसी टिप्पणियाँ आ जाती हैं।
"मत चूके के चौहान" वाली मनोवृति तो दाए बाए मिल ही जाती है। मंच व श्रोता मिले नहीं कि आत्मश्लाघा आ विराजती है। लगे हाथ उपलब्धियों का बखान
मुख्य मुद्दा बन जाता है। जैसा कि सरला जी ने इस पर अपनी लेखनी खूब चलाई हैं। जी, ईश्वरचंद विद्यासागर जी जैसी विभूतियाँ भी मानो विलुप्ति की कगार पर है।
*चाँद छुट्टी पर है,
अमावस जो है*
सरला जी की उपरोक्त पंक्ति मेरे लिए सूक्ति बन गई। उन्होंने तो "यूँ ही" लिख दी थी।
प्रस्तुत है लघुकथा व कविता,,,,
विषय:--विपन्न तिथियाँ
-:शीर्षक:-
*चाँद छुट्टी पर चला गया

विभूति नारायण, निकिता से मिलकर कर सोचने लगे थे, " आज मेरे लिए चाँद धरती पर उतर आया है। " और जब ब्याह रचाया तो मानो तारे भी बारात में शिरकत करने आ गए। ख़ुद दूल्हा बने विभूति ही नज़र आ रहे थे हर नृत्य में। जैसे ही निकिता परी सी मंच पर आई, उसे गोद में उठा नाचने लगे विभूति, बहारों फूल बरसाओ की धुन पर।
निकिता भाव विभोर हो धीरे से बुदबुदाई, " विभु , अभी पूरी ज़िन्दगी बची है प्यार के लिए। ये घड़ियाँ हैं रस्में निभाने की। " विभु पुनः अपनी महबूबा को बाहों में भर बोले, " यह तो एक झलक भर है, प्रिये। मैं क़ायनात की सारी खुशियाँ न्यौछावर कर दूँगा, बस देखती जाओ।"
माँ आशंकित हो बहु बेटे को काला टीका लगाते बोली, " मेरी उमर भी लग जाए मेरे बच्चों को।"
किसे पता था कि सचमुच नज़र लग जाएगी। विभूति को बुलावा आ गया। तमाम वादे कर चल दिए सरहद पर, विजय टीका लगाए।
अभी साल भी नहीं बीता था, बसन्त में ही पतझड़ आ गया। अपने अंश को पल्लू से ढाके निकी की आँखें निहारने लगी तिरंगे में लिपटे अपने प्रियतम को, " विभू, आय लव यू।"
चाँदनी बिखेरता उजला पखवाड़ा शुरू ही हुआ था। और अमावस की राह देखे बिना चाँद छुट्टी पर चला गया।
सरला मेहता
इंदौर म प्र
*चाँद छुट्टी पर है*

अमावस की रात है
चाँद आज छुट्टी पर है
मस्ती में तारों पर सुस्ती है छाई
ध्रुव चल पड़े माँ से मिलने भाई
सप्तऋषियों की समाधि गहरी
बनना नहीं उन्हें आज प्रहरी
तारा समूहों की विभिन्न छवियाँ
अवकाशी मौज मनाने चली हैं
पुच्छल तारों की सूनी कहानी
काली अमावस हुई है सुहानी
सूरज परेशां, छुट्टी नहीं है
रविवार भी रवि का नहीं है
चँदा मामा के हैं वारे न्यारे
अमावस पे छुट्टी मनाओ प्यारे
सरलाI
लघुकथा
*प्रेम की इति...*

सयानी...सुधा की प्यारी, समझदार सखी परेशान है। कैसे अंजाम दे सुधा व चन्दर की प्रेम कहानी को ? दोनों एक दूसरे को दिलोजान से चाहते हैं।म चन्दर पी एच डी करके पुनः अपने ही कॉलेज में प्रोफ़ेसर बन आ गया है। कक्षा में सुधा से बस आँखों ही आँखों में बात होती है। मानो सुनना चाहते हो," कह भी दो जो कहना है।"
रिसेस में तीनों फ़िर उसी कॉफ़ी मेज़ पर मिल जाते हैं। कैसी हो, पढ़ाई कैसी चल रही है, माँ बाबा अच्छे हैं ?बस यहाँ तक आकर घड़ी का काँटा रुक जाता है। चुस्कियों के साथ सयानी ही गुनगुनाने लगती है...इतनी मुद्दत बाद मिले हो, किन सोचो में गुम रहते हो। चन्दर की आँखों में पल भर को शरारती सुरूर आता है।सुधा शर्म से लाल हो जाती है। चन्दर, सयानी की ओर मुख़ातिब हो मुहँ खोलता है,"मैं गाँव जा हूँ।" सुधा के गुलाबी ओठ थरथराते हैं, " कब लौटोगे ?" सयानी बोल पड़ती है, " बस, हो गया।"
सयानी अपनी एक सखी के साथ मिल दो ख़त लिखती है, दोनों प्रेमियों की तरफ़ से। दिलों की सारी भावनाएं कागज़ पर उतार देती है।
स्टेशन पर तीनों मिलते हैं। सयानी चिट्ठियाँ थमाती है, "ट्रेन आने से पहले जल्दी से पढ़ लो।"
ख़त पढ़ते ही चेहरे खिल जाते हैं और एक साथ बोल पड़ते हैं, " अभी तक कहा क्यूँ नहीं ? "
तभी ट्रेन आ जा जाती है। सयानी डाँट कर कहती है, " भला हो ,ख़त का आविष्कार करने वालों का। वरना,,,मौन की अति से प्रेम की इति हो जाती।"
सरला मेहता
इसप्रकार छत्तीसगढ़ की सरला की यादगार पंक्तियों का *मंथन* म प्र की सरला को *सृजन* का सुअवसर दे देती हैं। आप कहेंगे यह तो चोरी है। नहीं नहीं ,,,मैं अपनी सहनाम को *यूँही* भेज भी देती हूँ। अब आप जो भी सोचे ये आपकी मर्ज़ी।
सरला मेहता

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