कविताअतुकांत कविता
राधा की गुहार
तू मेरा है कान्हा
परछाई बनके तेरी
गोकुल जा बस जाऊँ
मैं मुरली बन जाऊँ
तेरे ओठों पे रहके
किस्मत पर इठलाऊँ
तू रास रचैया है
सुध बुध भूलके मैं
तुझमें ही खो जाऊँ
तूने मुझे पहचाना
दीवानों में थी
मैं सबसे दीवानी
शब्दों का टोटा है
जिकर तेरा कान्हा
अश्कों से होता है
आहट है मौसम की
अब तू घर आजा
मैं तुझमें समा जाऊँ
बाहर तो हलचल है
तेरे नाम की मैं माला
निशदिन ही जपती हूँ
है सूनी सब गलियां
बहाने गोपियन के
इक झलक दिखा जाना
तू मथुरा मत जइयो
बिन तेरे कृश्णा
मेरा जीना अधूरा है
तू इतना प्यारा है
जब चाँद तुझे देखे
शरमा के वो छुप जाए
सरला