कविताअतुकांत कविता
वंदना
कृपा करो माँ शारदे
हम उतारे तेरी आरती
हमें नहीं कोई चाह है
बस ज्ञान की गंगा बहे
विद्या की लालसा बढे
विज्ञान के करतब करें
कठोर तप से दम भरे
बुद्धि को विकसित करें
विवेकानंद हम सब बने
सिंहनाद विश्वभर में करें
अधर्म का खंडन करें
कुरीतियों को ना कहे
विद्यासागर से हम बने
शिक्षाकी हिमाक़त करें
प्रयोगधर्मिता के बल से
माँ प्रकृति के सहयोग से
सुश्रुत चरक बनकर के
दुखी संसार की सेवा करे
हर शख्स सुशिक्षित हो
प्रगति पथ प्रशस्त हो
दूसरों की जय से पहले
माँ भारती की जयजय हो
सरला मेहता