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गुड टच, बैड टच - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

गुड टच, बैड टच

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*गुड टच, बैड टच*

नव्या नित्या की छुट्टी स्कूल संस्थापक की मृत्यु के कारण समय से पूर्व हो गई। दोनों जैसे ही बस से उतरी, टॉफ़ी वाले अंकल फ़ाटक पर ही मिल गए। जेब से दो केटबरी निकाल दोनों को बाहों में भर बोले, " अरे ! आज इतनी जल्दी,,,कोई बात नहीं मेरे घर चलो। कुछ खा भी लेना, आज तुम्हारी आंटी भी नहीं हैं। चलो हम तीनों कैरम खेलेंगे। "
दोनों बच्चियाँ ख़ुद को छुड़ाते हुए बोली , "नहीं, हमारी दादी है घर पर।"
नव्या पसीना पोछती बहन का हाथ थामे घर की ओर दौड़ी। बदहवास सी नित्या चिल्ला पड़ी, "अरे,,ताला, दादी शायद मंदिर गई होगी। स्कूल छूटता है न चार बजे, तब तक आ जाएगी। चलो हम घर के पीछे वाले बगीचे में चलते हैं।"
नव्या ने हाँ में हाँ मिलाई, " ठीक है वहाँ बैड टच से तो बच जाएंगे।कितने गंदे हैं न। मम्मा ने समझाया था ना इसके बारे में ।"
नित्या चौकी, " ये मीशु क्यों भौंक रहा है। देखो ये जानवर भी समझ गया होगा अंकल का बैड टच। ओह ! पीछे का मेन दरवाज़ा भी बंद कर गई दादी। "
दोनों बहनें दरवाज़े से चिपक कर खड़ी हो जाती हैं। दरवाज़े के उस पार मीशु के साथ तोते राजा से दीदियों को गुड टच का एहसास होने लगा। अपनी भाषा में मानो वे कह रहे हो," बेड अंकल, बैड टच "
सरला मेहता

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दादी की परी
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