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मौसम का मिजाज - Dr.Gokul Bahadur Kshatriya (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मौसम का मिजाज

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कविता शीर्षक : मौसम का मिजाज
आजकल के मौसम का मिजाज,
होता जा रहा है बड़ा ही मनमौजी।
ऐसा लगता है जैसे चारों ओर,
लड़ रहा बांके जवां फौजी।।

हर पल हर क्षण हर तरह के,
बदले विभिन्न प्रकार के रंग।
मौसम विभाग की भविष्यवाणी,
कर देते हैं इक पल में भंग।।

अभी तो कारे-कारे बादल छाए,
देख उसे सुनहरी धूप शरमाए।।
अचानक बदराओ का हुआ सफाया,
सूर्य की किरणें आकर फिर मुस्काए।।

खेले यह आजकल बच्चों सी आंख-मिचौली,
पतझड़ के मौसम में खेले गरमी की होली।
सरदी की सर्द हलचल में दिख जाती कभी,
रिमझिम बारिश के फुहारों की सूरत भोली।।

कभी गरमी की गरमी दिल को सताती,
कभी शुष्क हवा चलकर नींद उड़ाती।
अभी सांस संभली ही थी कि
इंद्रधनुष के रंगों की छटा भरमाती।।

जी करता फिर सावन के साथ हवा चले हवा मतवाली
फिर सुंदर वसुंधरा पर फैले मनोरम्य मनहर हरियाली।
सोंधी मिट्टी की महक,ताली पर ताली दे बहार के साथ,
दिलकश मौसम हो, हर वर्ष समय पर गाये कव्वाली।

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