लेखआलेख
*कुछ तीर, कुछ तुक्के*
संवाद सम्प्रेषण एक कला है। संवाद, व्यक्तित्व का दर्पण होते हैं। हम चाहे किसी भी विषय पर अपने विचार व्यक्त करें, कहीं न कहीं मानव प्रकृति झलक ही जाती है।
*अक्सर देखने सुनने में आता है,,,हम रुबरू उपस्थित हैं। फ़िर भी समक्ष खड़े शख़्स को यह पूछते अक्सर सुनने में आता है, " अरे ! आप आ गए।" साथ बैठा व्यक्ति कुछ खा रहा है। किंतु हम पूछने से नहीं चूकते, " अच्छा, खाना खा रहे हो।" ऐसे बेमतलब के संवाद सुन भला किसे हँसी नहीं आएगी।
कभी कभी चापलूसी या यूँ कहे कि मक्खनबाजी के ख़ातिर सौजन्यता की सभी हदें पार कर देते हैं।
यह अक्सर अधीनस्थों द्वारा अपने बॉस के लिए किया जाता है। ऐसे में सामने वाले की मिथ्या बढ़ाई करने में एड़ी चोंटी की ताकत लगा देते। आला दर्ज़े की बेतरतीब पोशाकों आदि के लिए तारीफ़ों के पुल बांधना कहाँ की समझदारी है,
" वाह ! सर आप तो जच रहे हो।" " लगता है फॉरेन का माल है, यहाँ का तो नहीं लगता।" "अब जाओ तो हमारा भी ध्यान रखना "आदि आदि
ऐसे में सुनने वाले तीसरे व्यक्ति को हमारी ओढ़ी हुई बेवकूफियाँ नज़र आ ही जाती है।
भारत की सांस्कृतिक परम्पराओं में भी हँसी व व्यंग्य का तड़का है। बीरबल की बातें व्यंग्य के माध्यम से अच्छे खासे मसले निपटा देती थी। अकबर की खंडित ऊँगली पर बीरबल का तंच"जो होता है अच्छे के लिए होता है" बादशाह की जान बचाता है।
यही हास्य महाभारत का कारण भी बन जाता है।
कुछ गीतों की झलकियां हैं,,,
" संजा बईं का लाड़ाजी,
लुगड़ो लाया जाड़ा जी "
" रजैया गद्दा तकिया ,,,2
मैंने जाड़ो में सिला,,,
बनी के ससुर ओढ़े, बनी की सासु ओढ़े,
एक खटमल ना जाने,
कहाँ घुस गया,
कभी ससुर को काटे,
कभी सासु को काटे,
वो नाचे ता ता थैया,,,"
" चलो बहना सजो जल्दी
अनोखा भात लाया हूँ।
तेरे ससुर जी प्यारे को
चोली लँहगा लाया हूँ
तेरी सासु दुलारी को
सफ़ारी सूट लाया हूँ।"
ये तमाम गीत हँसी के फव्वारे छोड़ते हैं।
अब कुछ शेर भी देखिए,,
" नज़ाक़त तो उनपे खत्म होती है,
जो ये फ़रमाते हैं,,,
के हलवा खाते हमारे ओठ छिले जाते हैं।'
या,, के कोथमीर खाकर
गोरी को जुक़ाम हो जाता है।"
"वो आए मेरी क़ब्र पर
अफ़सोस जताने,
दिए का तेल सर पर लगाकर चल दिए।"
" चिलमन हिली, खिड़की खुली,
उन्होंने झाँका,हमने ताका
पलट के देखा तो सर खोले सरदार खड़ा था। "
और हमारी होली तो है ही हँसी के हसगुल्ले छोड़ने वाली। इस दिन तो मानो रब ने हमें हर बात की छूट दी है। लोग तरह तरह के स्वांग रच मस्ती के मूड में रहते हैं। बरसाने की लठमार होली तो बदला लेने का बढ़िया मौका है। देवर भाभी, ननद भौजाई की होली जग प्रसिद्ध है। ऐसे में ठंडाई के बहाने भाँग पिला खूब मजे लेते हैं।लेकिन मजाल कि कोई बुरा मान जाए। बुरा न मानो ये तो होली है भई।
सरला मेहता