कहानीलघुकथा
विषय:-- अंधे की लाठी
शीर्षक:- पापियों के पाप
वातावरण में गीत गूंज रहा है,,,राम तेरी गंगा मैली हो गई,,,। माँ गंगा बोल। सुनकर आहत है, "कभी मैं पतितपावनी नदी थी, मंदाकिनी जान्हवी सुरसरिता आदि सुंदर नामों से अलंकृत थी। आज मुझे मैली कहा जा रहा है।" माँ ने तत्काल ब्रह्मपुत्रा व सिंधु बहनों से मशविरा कर भारत की सभी नदियों को गूगल मीट का समय बता दिया।
फ़िर क्या था सब बहनें तैयार हो या गई। उत्तर से गंगा जी की सहायक यमुना सरस्वती गंडक कोसी शासलिनता से बैठ गई। मध्यदेश से फ़टाफ़ट दीदी नर्मदा ने महानदी ताप्ती चम्बल बेतवा गम्भीर आदि को बुला भेजा। सब दौड़ती चली आई। दक्षिण भला क्यों पीछे रहे। काँवेरी, कृश्णा व गोदावरी के साथ आ पहुँची।
इधर सारी नदियाँ व्यस्त क्या हुई कि देश में हाहाकार मच गया। गंगा जी ने यह तो सोचा भी नहीं था। खेतों में सिंचाई बंद, बिजली ठप्प बिना जल के। नलों को खोलो तो गुड़गुड़ की आवाज़।
नर्मदा ने ऐलान किया, "इस मानव को सबक सिखाने का मौका मिला है हमें। जाके पैर न फटे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई।" नन्हीं मुन्नी नदियों को ताली बजाने का मौका मिल गया , " गंगा माँ, जब तक ये मानव हमें बचाने का संकल्प नहीं लें, तब तक इस हड़ताल को बदस्तूर जारी रखना चाहिए। "
गंगा माँ ने सरकार को अल्टीमेटम दे दिया, " हमें कूड़ादान नहीं बनाए, किनारों पर स्वच्छता का पूरा ध्यान रखे और सभी को साबरमती जैसा सौंदर्य लौटाएँ। वरना हम काम पर नहीं लौटेंगे। हम जीवित रहकर ही जीवनदायिनी बन सकते हैं। "
सरला मेहता