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घनाक्षरी - Vinayak Nath (Sahitya Arpan)

कविताघनाक्षरी

घनाक्षरी

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घनाक्षरी

फगुनी बयार झरे ,लोगवा गुहार करे।
धनि मनुहार करे,बाति मोरा मान ली।।
बानीं परदेस रवा,चलि आई देस रवा।
तनिको ना देर करी,मनवा में ठान ली।।
नयना में लोर बाटे,मनवा त थोर बाटे।।
फगुआ में चलि आई,बाति रवा जान ली।।
पिया जी के नेह लेले,फगुआ में मेंह चले।
चली ना बहाना कुछ,गांठ रवा बान्हि ली।।1

तड़पेला मन मोरा,साजन फगुनवा में।
हिचकेला हिंक भरि,मन परेशान बा।
उचरेला कागा रोज,हमरी अँगनवा में।
अइहें कब पियाजी,साँसत में जान बा।।
राति-राति, भर दिन ,देखेनी सपनवा में।
बसल कण-कण में,तोहरे परान बा।।
भोरे भोर देखनी जो,सोझा सजनवा के।
तन बौराइल अरु, मनवा हरान बा।।2

बहेला जो पुरवाई,तन लेला अंगड़ाई,
बोली सुनि मोरिनी के,मनवा लजात बा।
बरसे बदरिया त,छापेला अन्हरिया जे,
कड़के बिजुरिया त,मनवा डेरात बा।
नींन नाही आवे पिया,मोहे तड़पावे जिया।
पिया बिन सेज सखी ,तनि ना सोहात बा।।
करी इंतजार सखी,आइल बहार सखी।
पिया बिन बात अब ,कुछ ना कहात बा।।3

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