कहानीलघुकथा
लघुकथा -
अपशगुन "
"बहू कुत्तों का रोना अच्छा नही होता .....आज भी देखो कितने कुत्ते रो रहें है "।
जब से ये कोरोना का शोर मचा है ,कोई घर से बाहर नही निकलता,कुत्तों का रोना अपशगुन माना जाता है । कितना खराब समय है चारों तरफ बस हर व्यक्ति डरा हुआ है । कोरोना के चलते .....।
ना कही जा सकतें है । कामवाली बाई को बुला नही सकते। बच्चें पहलें ही घर से बाहर खेलनें नही जाते थे ।अब तो स्कूल भी जाना बन्द हो गया ।
"जी, मांजी !
ये बेचारें भुखे हैं.......।
सब लोग बाहर निकलनें से डरतें है।कोई इन को रोटी नही डालता है।सुना है पक्षी भी काफी भुख से मर रहे हैं।
कोरोना के कारण लोगों ने अपनें को घर मे कैद कर लिया।तब से ही ।पिछले दस दिन से सास की यही बातें बहू सुनती आ रही है।
आज उस ने अपनी सभी पडोसन सखियों को मैसेज किया ।
सभी ने आज से रोज दो रोटी अपनें भोजन मे ज्यादा बनानें मे सहमती दी ।
सभी काम से निबट ,नियत समय पर अपनी घर की देहरी पर खड़े होकर कर कुत्तों को रोटी खिला रही थी ।
उस दिन से कुत्तों की रोने की आवाज अब नही आयी ।
बबिता कंसल
दिल्ली
मौलिक रचना