कहानीलघुकथा
शीर्षक:
*चाँद छुट्टी पर चला गया
विभूति नारायण, निकिता से मिलकर कर सोचने लगे थे, " आज मेरे लिए चाँद धरती पर उतर आया है। " और जब ब्याह रचाया तो मानो तारे भी बारात में शिरकत करने आ गए। ख़ुद दूल्हा बने विभूति ही नज़र आ रहे थे हर नृत्य में। जैसे ही निकिता परी सी मंच पर आई, उसे गोद में उठा नाचने लगे विभूति, बहारों फूल बरसाओ की धुन पर।
निकिता भाव विभोर हो धीरे से बुदबुदाई, " विभु , अभी पूरी ज़िन्दगी बची है प्यार के लिए। ये घड़ियाँ हैं रस्में निभाने की। " विभु पुनः अपनी महबूबा को बाहों में भर बोले, " यह तो एक झलक भर है, प्रिये। मैं क़ायनात की सारी खुशियाँ न्यौछावर कर दूँगा, बस देखती जाओ।"
माँ आशंकित हो बहु बेटे को काला टीका लगाते बोली, " मेरी उमर भी लग जाए मेरे बच्चों को।"
किसे पता था कि सचमुच नज़र लग जाएगी। विभूति को बुलावा आ गया। तमाम वादे कर चल दिए सरहद पर, विजय टीका लगाए।
अभी साल भी नहीं बीता था, बसन्त में ही पतझड़ आ गया। अपने अंश को पल्लू से ढाके निकी की आँखें निहारने लगी तिरंगे में लिपटे अपने प्रियतम को, " विभू, आय लव यू।"
चाँदनी बिखेरता उजला पखवाड़ा शुरू ही हुआ था। और अमावस की राह देखे बिना चाँद छुट्टी पर चला गया।
सरला मेहता
इंदौर म प्र