कवितागीत
विधा :- कविता
शीर्षक :- बाँसुरी
जब कभी मैं बजाऊं बाँसुरी, तुम दौड़ी चली आना
तुम हो मेरी मैं तेरा हूँ, जाने ये सारा जमाना....!
लाख मुसीबत आए राहों में, तुम न कभी घबराना
मैं तुम्हारा कान्हां बन जाऊँ, तुम राधा बन जाना
जब कभी मैं बजाऊं बाँसुरी, तुम दौड़ी चली आना....!!
बाँसुरी की सुरीली धुन सुन, तुम आति प्रसन्न हो जाना
गैया लेकर जब मैं निकलूं, तुम पनघट तक चली आना....!
सखियाँ पूछे संबंध हमारी, अपना सांवरे बतलाना
एक जन्म न सात जन्म तक, तुम मेरा साथ निभाना
जब कभी मैं बजाऊं बाँसुरी, तुम दौड़ी चली आना....!!
मेरी बंसी की लय पुकारे, हरदम नाम तुम्हारा
देखा मैंने हस्त रेखा में, तुम ही हो मेरा सहारा....!
सारी दुनिया मैं भूल बैठा, बन गया तेरा दिवाना
दुनिया बाले जो भी समझे, तुम मुझे अपनाना
जब कभी मैं बजाऊं बाँसुरी, तुम दौड़ी चली आना....!!
जुल्फों की खुशबु मुझतक पहुँचे, हवा में लहराना
आँखो की काजल भाए मुझको, यूँ तेरा पायल बजाना....!
पनघट पर पकडूं मैं तेरी बहियाँ, तुम नहीं शरमाना
तुम हो मेरी मैं तेरा हूँ, जाने ये सारा जमाना
जब कभी मैं बजाऊं बाँसुरी, तुम दौड़ी चली आना....!!
ऋषि रंजन
दरभंगा (बिहार)
स्वरचित एंव मौलिक रचना ।