कवितागीत
आहत मन ...…
इस प्रेम निमंत्रण को प्रियवर स्वीकार करो
अपना लो मुझको तुम अब मत इनकार करो
स्वर मधुर तुम्हारा सुन उर बीज प्रेम उपजा धड़का था दिल लेकिन है इश्क नही समझा
सुन लो अपने दिल की तुम भी इकरार करो
अपना लो मुझको तुम अब मत इनकार करो
करते थे इक दूजे से हम इकतरफा सा प्यार
अब जान गए दोनों ही दोनों के हैं आधार
प्रेम करूँ स्वीकार जो तुम इज़हार करो
अपना लो मुझको तुम अब मत इनकार करो
इक पुष्प प्रीत का और उपहार मैं लाया हूँ
मुठ्ठी में भर दोनों के कुछ ख्वाब मैं लाया हूँ
देखे संग में हमने सपने साकार करो
अपना लो मुझको तुम अब मत इनकार करो
टूटा जो ख्वाब मेरा मैं जी नही पाऊँगा
तुम बिन जीने की हिम्मत कैसे मैं लाऊँगा
त्यागो न प्रीत प्रिय तुम भी इकरार करो
अपना लो मुझको तुम अब मत इनकार करो
शशि रंजना शर्मा 'गीत'