कहानीसामाजिकप्रेरणादायक
हवाई जहाज ने जैसे ही उड़ान भरी अपने गंतव्य पर जाने के लिए वैसे ही राहुल का मन भी पहुंच गया अपने गांव की गलियों में जहाँ खेल कूद और मस्ती में बचपन से कब जवानी की दहलीज पर आ खड़े हो गये थे।जैसे जैसे हवाई जहाज की उड़ान ऊँची हो रही थी राहुल भी बचपन की भूली बिसरी यादों में डूबता जा रहा था।
जवानी का जोश और शोहरत ,प्रसिद्धि कमाने का ऐसा जूनून सवार हुआ कि चल पड़े थे जिंदगी की रफ्तार को वश मे करने के लिए, एक बार जो वहां से निकले तो दुबारा जाने का मौका ही नहीं मिला अपनी गांव की भूमि पर।
दस साल पहले कंपनी की तरफ से एक साल के लिए अमेरिका आया था और फिर यहीं का होकर रह गया।
एक ही बेटा था राहुल अपने मां बाबूजी का इसलिए वो बेटे को विदेश नहीं भेजना चाहते थे पर राहुल ने अपनी जिद्द के आगे उनकी जरा भघ नहीं सुनी थी और उड़ गया था विदेशी धरती पर अपनें सपनो को पूरा करने अह कर गया था एक साल बाद लौट आयेगा पर वो साल कभी नहीं आया ।
वहां जाकर विदेशी चकाचौंध में ऐसा गुम हुआ की देश की मिट्टी की खुशबू तक तो भूला बैठा था।
यहाँँ तक की मां की आंखे आखिरी सांस तक बेटे को देखने के लिए तरसती रही पर राहुल ना आया और बिना बेटे के ही मां का अंतिम संस्कार करना पड़ा उसके बाद तो बाबा ने राहुल से फोन पर बात करना भी बंद कर दिया।
राहुल को इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था वो आसमान की ऊँचाइयों को छूने के चक्कर में जमीन पर कदम रखना ही भूल गया था शायद।
समय कब किस करवट बैठे कोई नहीं जानता बस यही राहुल के साथ हुआ जो राहुल आसमां की ऊँचाइयों पर उड़ रहा था एक दिन उसी ऊँचाई से जमीन पर गिरा तो पैर रखने के लिए जमीन तक नही मिली।
जिस कंपनी में राहुल काम करता था उस कंपनी को आर्थिक मंदी के कारण बहुत नुकसान उठाना पड़ा जिसके चलते बहुत सारे कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया बस राहुल भी उनमें से एक था।
नौकरी जाते ही विदेशों में बने रिश्तों ने भी अपना रंग दिखाना शुरू किया।
पति पत्नी दुख सुख के साथी होते है पर राहुल कि किस्मत में सिर्फ पत्नी सुख की साथी पत्नी ने साथ छोड़ दिया दोस्तों ने मुँह फेर लिए।
नौकरी और पैसो की तंगी से ज्यादा राहुल को अपनों के स्वार्थ ने तोड़ दिया।
इतने बड़े शहर में अब उसका अपना कोई नहीं था जो उसके दुख को बांट सके तब राहुल को अपने मां बाबूजी बहुत याद आने लगे।
अब राहुल को समझ आया कि अपना देश और अपने लोग अपने ही होते है पराये देश में आकर भले कितने रिश्ते बना ले लेकिन वह रहते पराये ही है।
मां और बाबू जी के साथ किये अपने बर्ताव को याद करके राहुल की आंँखो से आंसू बहकर हथेली पर गिरे तो राहुल भूली.बिसरी यादों से वर्तमान में लौटा तो.देखा की हवाई जहाज उसकी अपनी मातृभूमि पर खड़ा था।
एक लंबी सांसलेकर राहुल हवाई अड्डे से बाहर आया तो देखा बाबूजी उसका इंतजार कर रहे थे जिसे देखकर राहुल अपने आंसुओं को रोक नहीं पाया ।
इतने सालो बाद भी अगर कुछ नहीं बदला था तो बाबूजी का प्यार आज भी बाबूजी ने उसकी सारी गलतियों को भूला कर वैसे ही गले गलाया जैसे बचपन में लगाते थे।
वर्षों बाद ही सही पर राहुल के कदम लौट आये थे अपने देश और अपनों के बीच।