कहानीअन्य
यह रचना मौलिक ,स्वरचित एवं अप्रकाशित है।
नव प्रसूता
सविता लेटी हुयी थी अपने नवजात शिशु के पास। घर में काम करने वाली बाई गरम दूध एवं भुने हुये मेवे रख गयी थी उसके लिये।
नवजात शिशु सहित मात्र ये ढाई प्राणी ही तो थे घर में सो, 10 दिन की सद्यः प्रसूता सविता ने स्वयं ही बड़ी मुश्किल से बैठने की कोशिश की। दूध पीते हुये सविता की आँखो के आगे पिछले महिने का पूरा मंजर घूम गया। वह प्रणव से जिद कर रही थी कि ऐसे समय में उसके पास किसी अनुभवी स्त्री का होना बहुत जरूरी है। इसलिये या तो सासूमाँ को यहीं बुला लो या मुझे वहीं उनके पास गाँव भेज दो। किन्तु सासूमाँ ने शहर में आने से मना कर दिया कि माचिस जैसे फ्लैट्स में मेरा दम घुटता है, तुम यहीं आ जाओ। गाँव जाने के लिये प्रणव ने मना कर दिया यह सोचकर कि प्रसव में कोई दिक्कत हुयी तो वहाँ गाँव में कौन संभालेगा।
इन सब में परेशान सविता थी कि अपने आप को और अपने पहले बच्चे को वह अकेली कैसे सम्भालेगी।
इन्हीं विचारों में सविता खोयी थी कि प्रणव की आवाज आयी- 'मैं अॉफ़िस जा रहा हूँ।' प्रणव को देखने वह बालकनी में सहारा लेकर खड़ी हो गयी। सहसा सविता ने देखा कि सामने सड़क पर एक गाय का प्रसव हो रहा था। सविता ने देखा वही तड़पन, वही बेहिसाब दर्द जो प्रसव के दौरान उसने सहा था यहाँ गाय को लेकिन सम्भालने के लिये कोई नही था। न जाने क्यों वह उससे अपनी एकरूपता स्थापित करने लगी थी।
गाय ने शीघ्र ही एक बछिया को जन्म दे दिया था और निढ़ाल हो कर वहीं पड़ गयी थी। तभी गाय का मालिक मोटर-साइकिल पर आया। उसने न तो गाय को सहलाया न उसे कुछ खाने को दिया। सद्यः प्रसूत बछिया को मोटरसाइकिल पर डाला और गाय की तरफ बिना देखे चल दिया।
किन्तु माँ का हृदय तो टूटे हुये तन में भी बोलता है। सो जैसे ही उसने बछिया को ले जाते देखा तो बिल्कुल टूटे एवं रक्तसने शरीर से भी उसने उसके पीछे दोड़ना शुरू कर दिया।
सविता देखकर भौंचक्की थी। उसका भी वही सद्यः प्रसूत तन था और गाय का भी वही सधः प्रसूत शरीर था।
वह भी उसी तरह तड़पी थी प्रसव में जैसे सविता तड़पी थी।
वह अब अपना दुख भूल चली थी गाय के इस दुख के आगे।
अंजना गर्ग
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