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एहसास - Vijayanand Singh (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

एहसास

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एहसास
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" रूको !रूको ! हेलमेट लगा लो बेटा। " चौराहे पर सिपाहियों के साथ खड़े दारोगा जी ने सामने से तेजी से जा रहे बाईक सवार को आवाज दी।
नया मोटर वेहिकल एक्ट लागू होने के बाद से शहर के हर चौक-चौराहे पर पुलिस की जबरदस्त चेेेकिंग चल रही थी।
आवाज सुनकर बाईक सवार युवक रूक गया। उसने पीछे मुड़कर देखा। दारोगा जी के पास आया और पूछा - " अंकल, पुलिस वाले तो आजकल वाहन चेकिंग के नाम पर डंडा चलाते हैं। कॉलर पकड़ लेते हैं। मार-पीट, गाली-गलौज तक करने लगते हैं। मगर आप इतने प्यार से क्यों बुला रहे हैंं सबको ? बेटा रूक जाओ...बेटी रूक जाओ...सुनो बहन...सुनो भाई...? "
दारोगा जी ने उसकी पीठ पर हाथ रखते हुए कहा - " अच्छा ये बताओ, तुम मेरे बेटे जैसे हो कि नहीं ? "
" हाँ...हाँ।क्यों नहीं अंकल ? " युवक ने सकुचाते हुए कहा और बाईक से उतर गया।
" तो, अगर मैंने अपने बेटे को कहा कि हेलमेट लगाकर बाईक चलाओ। इसमें तुम्हारी ही सुरक्षा है, तो क्या गलत कहा मैंने ? " - दारोगा जी ने उसी से पूछ लिया।
" नहीं तो..! "
" फिर ऐसी लापरवाही क्यों बरतते हो, बेटा ? भगवान न करे रास्ते मेंं अगर तुम्हें कुछ हो गया तो ? अपने माँ-बाप, परिवार के बारे मेंं सोचो।" दारोगा जी ने प्यार भरे लहजे में युवक से कहा।
" सॉरी अंकल।अब ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा। थैंक्यू अंकल...। " - युवक ने हाथ जोड़ते हुए कान पकड़कर कहा। उसकी आँखें भर आयी थीं।
" जाओ..। " - दारोगा जी ने उसके सिर को सहलाया और धीरे से मुस्कुराते हुए कहा।
युवक ने दारोगा जी की बोलती आँखों में झाँका, झुककर उनके पाँव छूए और बाईक स्टार्ट कर आगे बढ़ गया।

" देखना रामलाल, यह लड़का अब कभी भी बिना हेलमेट के बाईक नहीं चलाएगा। "- दारोगा जी ने पास खड़े सिपाही की ओर मुख़ातिब होते हुए आत्मविश्वास से कहा।
" जी सर। " सिपाही ने भी सहमति जताई। पर वह पूछे बिना नहीं रह सका - " लेकिन सर, आप इन लोगों से कड़े शब्दों में बात करने की बजाय इतने प्रेम से कैसे बातें कर लेते हैं ? ये ऐसे थोड़े न सुधरेंगे ? "
" सुधरेंगे ये। जरूर सुधरेंगे। " - दारोगा जी ने सिपाही की ओर देखते हुए कहा - " ऐसा है....प्रेम में बड़ी ताकत होती है, जो बिगड़े-से-बिगड़े इंसान को भी रास्ते पर ले आती है। और फिर, अगर ये न भी सुधरे, तो कम-से-कम हमें दुआ तो देंगे ! हमें गाली तो नहीं देंगे ? जुर्माना लगाने से कहीं ज्यादा जरूरी है इन्हें एहसास दिलाना। समझे ! काश, यही एहसास मेरे बेटे को भी हो गया होता, तो आज....। " - शब्द जैसे उनके मुँह में ही अटक गये थे, मगर आँखों से टपकते आँसुओं ने वह सब कुछ कह दिया था, जो वह छुपाना चाहते थे।

- विजयानंद विजय

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दादी की परी
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