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उड़ान क्षणिका - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

उड़ान क्षणिका

  • 183
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* उड़ान *

है सूना नीड़ अँगने का
पंछी चल पड़े उड़ान पर
समन्दर पार
मिले जहाँ दाना पानी
अश्रु लिए आँखों में
घर में थकी सी आई माँ
देव-दीप जलाया
उठाया उदास पापा को
हर कोने में सन्नाटा
चल दिए बच्चे भी
अपनी उड़ान पर
रह गए दोनों एकाकी
चाय कप हाथ लिए
सरला

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