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दो सितारों का मिलन - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

दो सितारों का मिलन

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दो सितारों का मिलन*

धरा, नितांत अकेली खो जाती है अपने अतीत में,"कभी अम्बर के साथ उसकी हसीन शामें यहीं गुज़रती थी। कभी दोनों गुनगुनाने लगते,,,न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे। इसी तरह उस दिन भी काले बादल भावी तूफ़ान से शंकित कर रहे थे। और अम्बर ने अपने जापान प्रोजेक्ट का बताकर सचमुच डरा दिया था। "
और आज क्षितिज पर आकाश व सागर की मानो मिलन बेला है। लेकिन उसके अपने अम्बर ने धीरे धीरे उसे भुला ही दिया। अम्बर जिसके साथ कई रंगीन सपने संजोए थे, ख़्वाब बन कर ही रह गए। वो रेत के घरौंदे मात्र साबित हुए। ये कारे बदरा तभी से ऐसे ही घुमड़ रहे हैं। पता नहीं कब बरसेंगे ?
ये बूंदे भी रूठ गई हैं।उसके दुःख का साथ निभाने यह मौसम भी थम गया।
धरा ने एक कम्पनी में नौकरी कर ली, मन को बहलाने का बहाना चाहिए था। उसकी सौम्यता के कई दीवाने थे। किंतु कुछ नया लिखने के लिए पुराने को मिटाना होगा। और अम्बर का नाम तो धरा के दिल पर अमिट था।
तभी माँ का कॉल आया, " बेटी कहाँ हो ?कब से किसी का फोन आ रहा है। मोबा बंद क्यूँ कर रखा है ? मूसलाधार बारिश हो रही है। जल्दी से घर पहुँचो। " धरा की तन्द्रा टूटी, "ओह ! क्या ये बादल आज बरसेंगे ? और मेरे प्रिय का संदेसा लाएँगे। "
यह सोच धरा ज्यों ही ऑटो में सवार हुई, मोबाइल पर अम्बर का नाम चमका। और ट्यून गूंजने लगी, " बरसात में हमसे मिले तुम सनम, तुमसे मिले हम,,,,,,
तक्धिनाधन

सरला मेहता

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दादी की परी
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