कविताअन्य
आधुनिक कपड़े पहनती है,सर पर दुपट्टा नहीं ओढती
यह आधुनिक नारी है
वह घर के मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर पैसा कमाती है
यह आधुनिक नारी है,
अन्याय को सहती नहीं आवाज उठाती है अत्याचार के खिलाफ
यह आधुनिक नारी है
वह बच्चों को जन्म देती है सही गलत की पहचान कराती
यह आधुनिक नारी है
वह घर बाहर सब सम्भालती कभी नहीं थकती है
यह आधुनिक नारी है
अपने कर्तव्य को निष्ठा से निभाती कभी हार नहीं मानती है
यह आधुनिक नारी है
भूल खुद के दुख दूसरों के दुख - सुख में साथ निभाती
यह आधुनिक नारी है
जिंदगी के पथ निरंतर आगे बढती रहती बिना रुके बिना थके
यह आधुनिक नारी है
आये अपनों पर मुश्किल भी तो काली बन जाती है,
यह आधुनिक नारी है
दूर्गा सी सुंदर बन वात्सल्य की छांव में भर लेती सबको
यह आधुनिक नारी है
कलम की लेखनी पकड़कर सरस्वती सा ज्ञान बाँटती
यह आधुनिक नारी है
नारी हर रूप में अप्रितम है,हर युग का आधार है
यह आधुनिक नारी है।।