कहानीसामाजिकप्रेरणादायकलघुकथा
हम आये दिन अखबारों में ये खबर पढ़ते हैं कि दहेज के लिए ससुराल वालों ने बहु को जला दिया। हर पल हर क्षण एक बेटी ससुराल वालों के अत्याचार का शिकार होती है।
हर माता-पिता अपनी बेटीयों के लिए एक अच्छे भविष्य का सपना देखते हैं।जो प्यार, सम्मान उसे अपने मायके में मिलता है वही उसके ससुराल में मिले। ऐसा ही कुछ सपना उदय बाबू ने अपनी बेटी भावना के लिए देखा था...... पर वो सपना कभी पूरा नहीं हुआ..... और हकीकत से सामान करने की हिम्मत उदय बाबू में नहीं थी।जिस बेटी को एक खरोंच लग जाने पर पुरा घर अपने सर पर चढ़ा लेते थे...... आज उसी बेटी के बदन पर अनगिनत घाव उसके ससुराल वालों ने दहेज के नाम पर दिये।
आज भावना मौत और जिन्दगी के बीच लड़ रही है।उदय बाबू और उनकी पत्नी कविता एक टके नजर गढ़ाए अपनी बेटी को देखे जा रहे हैं। "ऐसा लग रहा है कि भावना जीना ही नहीं चाहती है उसके अंदर जीने की चाहत खत्म हो गई है....." डॉक्टर ने ये बात उदय बाबू को कहीं.....वो कोई मुवेट नहीं कर रही है।उदय बाबू "डॉक्टर साहब ऐ आप क्या बोल रहे हैं....उसे जीना होगा अपने पापा के लिए......आप कुछ भी करीये पर मेरी बेटी को बचा लीजिए....आप रूपयों की चिंता ना करें जैसे तैसे कैसे भी मैं रूपयों का इंतजाम कर लुगा.... अगर मुझे अपने आप को बेचना भी पड़े वो भी कर दुंगा....प्लीज डॉक्टर साहब मेरी बेटी को बचा लो... मैं आपके सामने 🙏🙏🙏🙏🙏🙏जोड़ता हूं।"
डॉक्टर साहब ने कहा"उदय बाबू रूपयों की कोई बात नहीं है.... बात ये है कि जब तक मरिज खुद जीना नहीं चाहता तो मैं और आप कितना भी कुछ कर ले कुछ नहीं हो सकता..... पेशेंट के अंदर जीने की चाहत होनी चाहिए तभी कुछ हो सकता है"। आप परेशान ना हों हम पुरी कोशिश कर रहे हैं।उदय बाबू अपनी पत्नी कविता से कहते हैं"आज जो कुछ भी भावना के साथ हुआ है उसके जिम्मेदार सिर्फ हम दोनों है।"तभी कविता ने "सही कहा आपने... बेटीयों को शुरू से हम ये सीखाते है बेटी की डोली मायके से उठती है और ससुराल से अर्थी निकलती है।"सब दोष हम लोगों का है।
आज अपनी बेटी के इस हालत लिए हम अपराधी है। क्यों हम अपनी बेटी के दर्द नहीं देखा पाये... उसकी हंसी के अंदर छिपे दर्द को क्यों नहीं महसूस किया। क्यो कहा हमने उसे आज़ से वो तेरा घर है....ये क्यों नहीं कहा बेटी तुम ससुराल जा तो रही है...पर तेरे माता-पिता का घर तेरा था और तेरा ही रहेगा हमेशा।जब कभी तुझे कोई तकलीफ हो... बेझिझक अपने घर आ जाना। उदय बाबू और कविता दोनों ने अपने आप को दोषी ठहराया।अब अपने आप को दोषी ठहराने से क्या होगा...... भावना हमेशा के लिए जीवन से मुक्त हो गई। और अपने पिछे कई सावाल अपने माता-पिता के लिए छोड़ गई।
बेटीयों की खुशी के लिए माता-पिता सब कुछ देते हैं।सारे शौक पुरे करते हैं। बेटी के ससुराल वालों को खुश करने के लिए हम सब कुछ देते हैं और यही जब उनकी आदत बन जाए तो समय रहते परिस्थितियों को समझ ले...तकी फिर किसी भावना की बलि ना चढ़े । अपनी बेटियों को ये सीखना चाहिए कि जब भी कुछ तुम्हारे साथ गलत हो उसके लिए लड़ो.... अन्याय ना सहो और ना होने दो। दहेज के नाम पर बेटीयों पर अत्याचार कब तक.....???
दहेज एक ऐसी बिमारी है जो कभी जड़ से खत्म नही हो सकती...पर वक्त के साथ कम करने की कोशिश की जा सकती है.।अगर हर लड़की के माता-पिता अपनी बेटी को ये कहे..जीवन में कुछ भी हो जाए.. कोई तेरे साथ हो या ना हो हम जीवन भर तेरे साथ है।
रिश्तों के बाज़ार में बेटों की बोली लगती है और बेटीयों की बलि चढ़ती है। कड़वा है पर सत्य वचन है।वक्त रहते अपनी की मनोदशा को समझें..उनका साथ..समाज में अपनी इज्जत बनाने रखने के लिए उनकी बलि ना दे।
अगर कोई गलती हो गई हो तो माफी चाहुंगी 🙏🙏🙏🙏
धन्यवाद
आपकी अपनी
सीमा कृष्णा सिंह 🙏🙏🙏🙏