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रंग बिखेरे हज़ार - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

रंग बिखेरे हज़ार

  • 179
  • 3 Min Read

*बिखेरे रंग हज़ार*

इस रंग बदलती दुनिया में
प्रकृति ने बिखेरे रंग हज़ार
पर्ण प्रसून हैं न्यारे न्यारे
झलकाते हैं अनूठे नज़ारे
मौसमों के तकाज़े पर
बारी बारी से दर्ज़ कराते
मौजूदगी
पतझड़ सावन बसन्त बहार
हरे पीले जर्दालू पत्ते
कह देते आपबीती कहानी
फूलों के रंगों की ज़ुबानी
लाल गुलाबी नील बसंती
रंगों की है शान
उल्लहास खुशी अवसाद वेदना
जीवन में भी रंग हज़ार
जिस रंग की पहने हम ऐनक
वैसे ही दिखते रंग हमें
ग़र सही सोच का चश्मा पहने
हर भाव गुलाबी लगता है
अरे, फूलों का क्या,,,
मंदिर में पावन बन जाता
वेणी में गुथ मुस्काता
और वीरों के पथ पर बिछ
निज भाग्य पर इठलाता
सरला मेहता

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