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नारी नहीं बेचारी - Dipti Sharma (Sahitya Arpan)

कवितागजल

नारी नहीं बेचारी

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अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की सभी को बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनायें।।।।

है नाज मुझे खुदपर कि मैं एक नारी हूँ,
सोच समझदारी से सबपर ही भारी हूँ।

माँ,बहन , पत्नि और बेटी कई रूप मेरे,
फिर भी पहचान ढूंढती बड़ी लाचारी हूँ।

करते हो बार-बार मान मर्दन तुम मेरा ,
गिरकर भी खुद को हरबार ही संभारी हूँ।

कोख में आते ही मुझे मारने की सोचते,
जिससे हो जन्में मैं वही माँ रूप नारी हूँ।

जो मेरी सोच और कपड़ों से जात बताते,
उनकी तो हर एक सोच पर मैं भारी हूँ।

सभी क्षेत्रों पर मर्दों के बराबर हूँ मैं खड़ी,
हूँ बड़ी ही आधुनिक फिर भी संस्कारी हूँ ।

क्यूँ बार-बार मेरी अस्मिता से हो खेलते,
दीप"सी जलती अब नहीं रही बेचारी हूँ ।

दीप्ति शर्मा
जटनी ( उड़ीसा )

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