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मां की हँसी - Anju (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेरणादायक

मां की हँसी

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मां मुझे बचा लो ! मैं अभी मरना नहीं चाहता।मै आपका अच्छा बेटा हू ना मां। अठारह वर्ष का संजीत अस्पताल में अपनी मां से लगातार बोले जा रहा था।
मां बस बेबसी से बेटे को देखे जा रही थी।
दो बहनो का इकलौता भाई था।बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा का धनी था।जो भी काम करता सब मे प्रथम स्थान प्राप्त करता।
पढा़ई में भी हमेशा फर्स्ट आता था।घर पर तो सबका लाडला था।संजीत जब घर में रहता सबको खूब हंसाता।सबके साथ मस्ती करता।रोते हुए को हंसाना उसे बहुत अच्छे से आता था।
मां की तोहर सांस संजीत में अटकी रहती।संजीत संजीत करके पूरा दिन निकलता था।घर के साथ साथ कोलोनी में भी सब संजीत को बहुत प्यार करते थे।कुल मिलाकर संजीत किसी हीरो से कम नहीं था।
स्कूल की पढा़ई पूरी करने के बाद संजीत प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने लगा।बचपन से ही पढा़ई में होशियार था इसलिए उसे पूरा विश्वास था कि उसको देश के सबसे अच्छे आई.आई.टी. कोलेज में ही एडमिशन मिलेगा।परीक्षा देने के बाद संजीत मानसिक रूप से खुद को तैयार कर लिया था कि उसका एडमिशन वहीं होगा जहां उसको चाहिए।
इस बात को लेकर वह हमेशा घर मे बाते करता रहता अपने भविष्य के सपने बुनता रहता।
कभी कभी संजीत के मां उसकी बाते सुनकर संजीत को बोलती कि बेटा जैसा हम सोचे जरूरी नहीं वैसा ही सब हो इसलिए खुद को हर तरह के परिणाम को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।ऐसा नहीं होना चाहिए कि हमारे मन के अनुसार कुछ नहीं हो तो हम किसी अवसाद से घिर जाये।
पर संजीत ने तो जैसे हारना सीखा ही नही था।वह तो यही कहता -मां जो सोच लेता हूँ उसको जरूर हासिल करता हूँ ,आप देख लेना आपका बेटा सबसे बढिया कोलेज से ही आगे   की पढाई करेगा।
किसी ने सच ही कहा है सब सोचा हुआ हो तो फिर इंसान और भगवान में फर्क क्या रह जायेगा।वहीं संजीत के साथ हुआ । परीक्षा के परिणाम में एक या दो नम्बर कम आने से संजीत को वह कोलेज नहीं मिल सका जो उसको चाहिए था।यह देखकर संजीत बहुत दुखी हुआ। यही कहने लगा क्या मैं इतना बुरा हूँ कि मुझे अपनी पसंद का कोलेज नहीं मिला।
ऐसा  नहीं बोलते संजीत तुमने बहुत मेहनत करी थी लेकिन जरूरी नहीं है हमे सब कुछ हमारे हिसाब से मिले ।ईश्वर ने तुम्हारे लिए जरूर कुछ और अच्छा सोचा है  इसलिए निराश नहीं होते ऐसे,जो कोलेज मिला है वहां जाने की तैयारी हंसते हंसते करो। मां के समझाने से उस समय तो अपने मन को समझा लिया लेकिन मन में कहीं ना कही अभी भी उसके दिल दिमाग मे वहीं कोलेज घूम रहा था ,वह मानने को तैयार नहीं था कि उसको सबसे बढिया कोलेज नहीं मिला।दिन रात यही सोचता रहता और एक दिन जब सब परिवार वाले सो गये तो संजीत ने जहर खा लिया।
जब जहर से जी घबराने लगा और दम घूंटने लगा तो संजीत चिखने लगा।तब सबकी आंख खुली और संजीत के कमरे मे जाकर देखा तो आंखे फटी की फटी रह गयी।संजीत के मुख से झाग निकल रहे थे ।
पापा ने तुरंत एम्बुलेंस बुलाकर संजीत को अस्पताल मै भर्ती कराया किस्मत से संजीत का ईलाज सही समय पर शुरू हो गया जिसकी वजह से उसकी पूरी बोडी में जहर नहीं फैल पाया लेकिन अब भी हालत नाजुक बनी हुइ थी।जब भी आंख खुलती संजीत बार बार यही बोलता कि मुझे बचा लो।अब मै कभी ऐसा नहीं करुंगा।
पास बैठी मां सिर्फ उसको देखे जा रही थी ईश्वर से प्रार्थना कर ही थी इकलौते बेटे की जान के लिए।तभी डाक्टर ने आकर बताया कि संजीत खतरे से बाहर है पर कमजोरी है इसलिए दो-तीन दिन अस्पताल मैं ही रखेंगे।
चार दिन बाद संजीत घर लौट आया था तब उसने मां से कहा-मैं जानता हूँ आपको मैने बहुत दुख पहुँचाया है मुझे ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए था मुझे कोई हक नहीं बनता आपको और पापा को दुख पहुँचाने का।
जब मैं जिंदगी और मौत से लड़ रहा था तब देखा मैने की आप कैसे मेरी जिंदगी के लिए भगवान से प्रार्थना कर रही थी बिना यह सोचे कि मैने आपको कितना दुख पहुँचाया है।
आज अगर आप नहीं होती तो शायद मै भी.......
बस करो संजीत चुप हो जाओ बस एक बात हमेशा याद रखना जब बच्चे हँसते है तो मां हँसती है और अगर बच्चे के चेहरे पर जरा भी शिकन दिखाई तो वह अपना सुख दुख सब भूल जाती है।
जिंदगी में सफलता असफलता तो लगी रहती है पर कभी इसकी वजह से अपनों को तकलीफ पहुँचे वहकाम कभी मत करना।
जी मां कहते हुए संजीत मां के गले गया ।

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दादी की परी
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