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डर - संजय अविनाश (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

डर

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डर (लघुकथा)

बिरजू ने डॉक्टर से दिखाया। उसने दवा खाने के साथ सूई भी लिखा। अब कोई सूई देने वाला नहीं। आखिरकार अपने मित्र जो कस्बे के ग्रामीण चिकित्सक था, उसे डरते-डरते फ़ोन किया। फ़ोन पर उसकी हताश भरी आवाज़ को सुनकर, मित्र ने मुस्कुराते हुए उसे क्लिनिक पर बुला लिया।
बिरजू क्लिनिक पहुँच गया
दरअसल, बिरजू अंदर से टूट चुका था। सप्ताह दिन में उसका वजन 14किलोग्राम कम हो गया। घर के अलग कमरे में रह रहा था। वह आईना देखता, चेहरे पर मायूसी की लकीर दिखाई पड़ती। फिर आईना को किनारे कर, रख देता और सोचने लगता, तीन बेटी हैं, दो बेटे हैं। क्या होगा अगर कुछ हो गया तो? चिंता का विषय था कि रिपोर्ट में उसके दो भतीजे को डॉक्टर ने कोरोना पॉजिटिव बता दिया था।
बिरजू को भी खाँसी व सीना दर्द होने लगा था। घर के सदस्य दूरी बना लिये थे।
बिरजू क्लिनिक पहुँच गया। मित्र ने बड़ी ही आत्मीयता के साथ उससे बात की और उसे सूई लगा दिया। घंटों बातचीत हुई। फिर बिरजू ने सहमते हुआ पूछा, "मुझे कुछ होगा भी?"
"क्या? होगा क्या?" डॉक्टर मित्र ने कहा।
"यह कोरोना, अखबार और इसकी कोई दवा नहीं...?
"अरे! दवा? जब कोई बीमारी रहे तब न। घबराने की ज़रूरत ही नहीं है। बिल्कुल! ठीक हो। थोड़ी सावधानी रखो। ठीक हो जाओगे।"
"घर म़े भी तो सब लोग दूरी बनाकर रह रहे हैं। कोई कुछ बोलता है, तो कोई कुछ। पिछले तीन दिनों से परेशान हो गया हूँ। अभी तक रिपोर्ट भी नहीं आई।"
"रिपोर्ट से क्या मतलब है। तुम ठीक हो। रिपोर्ट पॉजिटिव भी आती है तो चिंता की बात नहीं है। अब तक में निगेटिव हो गया होगा।"
"सच में?" बिरजू के चेहरे पर खुशी की लकीर थी।
"यही सच है।"
तत्क्षण मोबाईल में मैसेज टोन सुनाई पड़ी। देखा तो मैसेज था, "आप कोरोना निगेटिव हैं।"

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दादी की परी
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