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कर्ण का दर्द - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

कर्ण का दर्द

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अंत का आरम्भ ,,,विषय

कर्ण का दर्द

माँ ! ये कैसी कहानी मेरी
आरम्भ में ही अंत हो गई
राजवंशी सूर्य अंश था मैं
सूत पुत्र बन तड़पता रहा
बना बैरी स्वबन्धुओं का
दुर्जन कौरवों से मित्रता
वंचित रहा अधिकारों से
लड़ता रहा अपने लहू से
कभी याद नहीं आई मेरी
ना भीगा आँचल माँ तेरा
ख़ुद का लगाया पौधा ही
उखाड़ा, खिलने से पहले
कर दिया अंत कहानी का
उसके आरम्भ के पूर्व ही
सरला मेहता

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