कविताअतुकांत कविता
कहाँ खो गए तुम ?
कहाँ खो गए तुम तारों में
कैसे पहचानूँ सनम तुम्हें
कुछ तो कहो न इशारों में
के तेरा एहसास भर पालूँ
क्या जवाब दूँ छुटकी को
तुम्हारी रट लगाते नन्नू को
बहानों की फेहरिस्त लंबी
कैसे बोलूँ ना आएंगे पापा
दफ्तरों के इन चक्करों में
पेंशन की सब खानापूर्ति
दिनभर भटकती अकेली
अपनों ने भी फेर ली पीठ
बाउजी का पूछना जारी
कब लाएगा चश्मा लल्ला
बौराई माँ कहे दौरे पे हो
बताओ ना कैसे संभालूँ
ये सब करते भूल जाती
तस्वीर से माला बदलना
के एक झलक पालूँ प्रिये
धूप बत्ती ही लगाते हुए
कहते थे सात जन्मों तक
जुदा ना होंगे हम प्रियतम
सारी चाहतें लिए दिल में
चल पड़े आखरी सफ़र पे
जहाँ भी हो खुश रहो तुम
हमारा सोच दुखी न होना
तुम्हारी यादों के ही सहारे
निभा लूँगी कर्तव्य तुम्हारे
सरला मेहता