कविताअन्य
मेरी आह की आवाज
महज सपने बिखरे, सांसें उखड़ी
दिल भी है टूटा, नींदें भी टूटी।
महज एक आस थी ख्वाहिशें पाने की,
बचपन भी छूटा,जवानी भी छूटी।
अपने भी झूठे,पराए भी झूठे,
झूठी थीं महफ़िल,कारवाएं भी झूठे।
घमंडी मन का दमन हुआ,
परछाईं थीं झूठी,आईना था टूटा।
तरजीह मुकम्मल होने में,
बचपन भी छूटा,जवानी भी छूटी।