कविताअतुकांत कवितालयबद्ध कवितागीत
बरसात में किसान
शहर शोर कर रहा मेघ बरसे है
देखने को एक बूंद उनके नेंन तरसे है
बिन मौसम बरसाता देख के खुदा
उस अन्नं दाता के नयन बरसे है।
एक मांग रहा मेघ,एक अरदास भौर से
ताल्लुक़ एक आनन्द का ,एक अशांति के शोर से
खो दिए हैं घोसले ओर अपने हौसले
बंदा डूबता दिख रहा इष्टिमार से।
नयन बिगते रहे रात्रि में नही शयन।
आनन्द भी अशांति भी किसका करे अब चयन।
उठ उठ के देखता,टूटी तो नही आस है
अरदास यू निरन्तर नीर बहाते नयन
अन्नंदाता शान नाम ही किसान है
उस एक के बाद तो दूजा भगवान है।
वो देता इसको है ये देता सबको है
विश्व के सागर का माँझी तुहि सम्मान है।
किसान है किसान है वो भारत की शान है।
महेश"माँझी"