कविताअतुकांत कविता
घर एक मंदिर
छत की दीवारों की चुनाई
मकान बना देती है
आपसी रिश्तों की गरमाई
मकान को घर बना देती है
प्रेम की मिठास की पुताई
घर में चार चाँद लगा देती है
व्यवहार की नरमाई
सफर को सुहाना बना देती है
विश्वास की भरपाई
संबंधों की दीवार मिटा देती है
परस्पर सहयोग की रोशनाई
आपसी नेह जगा देती है
पिता के साए की परछाई
जिंदगी सहज बना देती है
माँ की ममता की गहराई
परिवार को एक बना देती है
कली से फूल की चटकाई
बगिया में बहार ला देती है
बच्चे की पहली किलकारी
घर को स्वर्ग बना देती है
शुभकामनाओं की दुहाई
जन्नतका अहसास भर देती है
प्रार्थना के स्वरों की सिमराई
घर को मंदिर ही बना देती है
सरला मेहता