कविताअतुकांत कविता
मिल गई मुझे शादमानी
हर तरफ था घुप अँधेरा
नाशाद थी जिंदगानी
बदरंग थी मेरी चदरिया
कोरे काग़ज़ की कहानी
वास्ता तुझसे हुआ है
हांसिल हुई मंज़िल सुहानी
तू मिली जबसे मुझे
मिल गई मुझे शादमानी
भटकता राही था मैं
ना कोई मेरी निशानी
बरसता आँखों से पानी
खाली थी मेरी सुरमेदानी
दोस्ती जब से हुई है
तेरे मेरे दरमियानी
तू मिला जब से मुझे
मिल गई मुझे शादमानी
थे बहोत हमराज़ मेरे
की नहीं मेरी कद्रदानी
मतलब परस्ती भीड़ में
बात न कोई मेरी मानी
एक ही दस्तक पे मेरी
पेश कर दी मेज़बानी
तू मिला जब से मझे
मिल गई मुझे शादमानी
मैं था इक कंगला भिखारी
ना मिला कोई महादानी
ठोकरे दर दर की खाई
ना मिला कोई महादानी
बस तेरा दीदार करके
हो गई मेरी आमदानी
मिल गई मुझे शामदानी
काली अमावस रात में
पूनम कभी थी वीरानी
तारों की बारात उतरी
पूरी हुई हसरत पुरानी
जमीं पर है चाँद उतरा
चाँदनी पसरी रूहानी
तू मिला जब से मुझे
मिल गई मुझे शादमानी
जब दिली अल्फ़ाज़ मेरे
हो गए थे आसमानी
कलम से रिश्ता हुआ जब
हुई ख़ुदा की महरबानी
गम भी रुख़्सत हो गए हैं
दुनिया हुई है पानी पानी
तू मिला जब से मुझे
हो गई मुझे शादमानी
सरला मेहता