कहानीलघुकथा
विषय:-अंगूर खट्टे हैं
*सेवा का मेवा*
शेखर जी बेटे के विदेश जाने से अकेले रहते हैं। सेवक रामदास को पत्नी अपने आख़री वक्त में कह कर गई, " भैया, " मेरे बाद अपने दादा का ध्यान रखना।"
पिता की बीमारी में भी बेटा नहीं आया। मृत्यु हुई तो सारे संस्कार भी महामारी के चलते सेवक ने किए। आज बेटा घर वगैरह सम्पति बेचने हेतु आया है। वसीयत से पता चला कि शेखर सब कुछ रामदास के नाम कर गए हैं। अड़ोस पड़ोस में कानाफूसी होने लगी, "बेटे के लिए अब अंगूर खट्टे हैं। सेवा का ही मेवा मिलता है।"
सरला मेहता
इंदौर