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मेरा गांव मेरा आंगन - Sapna Vyas (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मेरा गांव मेरा आंगन

  • 235
  • 12 Min Read

शीर्षक-मेरा गाँव मेरा आँगन

आज फिर बढ चले है
उस कच्ची डगर पे मेरे पांव
जहां रेतीले धोरों के बीच
बस्ता था मेरा सुंदर गाँव
जहां बीता अलबेला बचपन
सुनहले सपन सी अलहङ जवानी
कल की ही बात लगती है
जैसे हो परियों की कहानी
इक चबूतरा था बीचोबीच
चारों ओर था जिसके गाँव
जिसकी पहरेदारी करती थी
पीपल की ठंडी छांव
जहां पे खेले चोपङ पासे ,गड्ढे
अगणित लगाये ताश के दाव
पेङ पर चहकती चिङियां मैना
पक्षी कौवे करते कावं कांव
उन्हीं गलियों में आज फिर
चल पङे है मेरे कदम
हंसना,खेलना,रूठना,मनाना
जीवित है मेरी यादें हरदम
वही था मेरा घर इक जर्जर
मन को लगता सदा वह निर्जर
हर दिन मुझको लगता सुंदर
रिश्तों का था महा समंदर
हर रिश्ते में बसता प्यार
नोंक-झोंक मीठी मनुहार
रोटी दाल ही थे पकवान
हिल-मिल सब मनते त्यौहार
जीर्ण-शीर्ण थे दर दरवाजे
दिल पक्के आंगन थे कच्चे
हर दीवार में पङी दरार
रिश्ते सच्चे बनते ढाल
आंगन में थी एक दीवार
सर्द गर्म सब सहती प्रहार
टूट-फूट हो गई थी ज़ार
तनी थी उसपे कपडों की तार
घर में बसती माँ की जान
सब पर वारती तन-मन,प्राण
घर थे कच्चे रिश्ते सच्चे
क्या बूढ़े युवा और बच्चे
व्हीकल नाम की थी बस साईकल
बैठकर उस पर बनते माइकल
वो ही इनोवा वही फरारी
शान से करते उसकी सवारी
उसपर जमी हुई धूल हटाते
पत्थर कील से नाम गुदाते
दादा,पापा,चाचा,बुआ सब
अपनी बारी पर इतराते
साईकल थी हम सबका मान
रखते सबजन उसका ध्यान
हाथ में हैंडल आता आन
धन्नो बसंती की जोङी जान
अब ना कोई जाता गांव
रूक पङते है सबके पांव
बिसर गये सब घर आंगन को
बचपन छुटपन पीपल छांव

समय है बदला नाम है बदले
खेत घरौंदें काम है बदले
सब चल पङे शहरी पगङंङी
ना दिखे गांव में ट्रेन की झंडी
शहरों की दुनिया है नूतन
खेत है सूने गांव पुरातन
फिर से आ अब लौट चले
गांव से घर से मिलें गले
मुझको मेरा घर था प्यारा
सारे जगत जहां से न्यारा
काश लौट आए वो बचपन
खुली आँख से जिये ये सपन
खेत,गांव और घर की गलियां
मित्र-मंडली की रंगरलियां
साइकल,ट्यूब,चक्का और कंचे
फिर से बन जाये हम बच्चे
माँ बाबा भाई का दुलार
वापिस सबका पांऊ प्यार
हरपल सबकी आती याद
इत्ती सी रब से फरियाद।
आज है देखा फिर वैसा घर
कच्चा आंगन जर्जर चौखट
तनी पे कपङे पर साईकल नव
याद आ गया मुझे मेरा भव

सपना यशोवर्धन व्यास 😍😍🙏🙏🌑।

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