कवितागजल
सावन की बूंदों ने ऐसा जादू ढाया है
मेरे मन में हसरतों को फिर से जगाया है
चलो डूब जाए प्यार के सागर में
रिम झिम बरखा ने गीत गाया है
सावन की .....
कोमल सा ये मन,सुनके बिरहा की धुन
हो गया व्याकुल, देख सावन का मौसम
प्रेम की गलियों ने तुझको बुलाया है
मन मंदिर में अब तो तू ही समाया है
सावन की ......
रुत्त ये सुहानी कहीं बीत ना जाए
भर लो आघोश में हम-तुम हम हो जाए
सुनहरी सी धूप में प्रेम के इन्द्रधनुष ने
मेरे जीवन में नए रंगो को सजाया है
सावन की .....