कवितालयबद्ध कविता
खुशियाँ
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मैं ख़ुशी तलाश रही बड़ी बड़ी सी बातों में,
प्रिय जन से मुलाकातों में चांदनी सी रातों में,
ख़ुशी मुझे तलाश रही छोटी छोटी बातों में।
इंतज़ार की रातों में गम मिटने की चाहतों में।
मैं ख़ुशी तलाश रही झीलों में और तालों में,
वैभव भरे मॉलों में खुशकिस्मत पैसे वालों में
ख़ुशी मुझे तलाश रही गाँवों की मस्त उचानो में।
खेतों और खलिहानों में मेहनती किसानों में।
मैं ख़ुशी तलाश रही ऊँची मसीत शिवालों में,
मौलवी पंडों की चालों में गीदड़ शेरों की खालों में
ख़ुशी मुझे तलाश रही झुग्गी और चॉलों में।
भूखे पेट सोने वालों में मेहनत कश के छालों में।
मैं ख़ुशी तलाश रही नाजुक नरम से बिस्तर में,
व्यंजन से लदे उन दस्तर में झूठन से भरे छूटे तस्तर में,
ख़ुशी मुझे तलाश रही टूटी छान पलस्तर में।
खाली पड़े कनस्तर में अभावों के चुभते नश्तर में।
अब जाना क्यों मैं भाग रही सोई थी अब मैं जाग रही,
क्यूँ खुशियों को मैं तलाश रही रही,जब खुशियाँ मुझे तलाश रही,बदला पहलू खुश रहने का,
पकड़ा दामन फिर खुशियों का छोड़ा जो हाथ न आया था,
परमारथ को हाथ बढ़ाया था मिल गयी अपेक्षित ख़ुशी मुझे तज़ मिथ्या सत्य अपनाया था।
शशिरंजना शर्मा "गीत"