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गाँव - Das bairagi (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

गाँव

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कितना सुख था टुट मकानों में
हरे भरे खेत और खलियानों में

ना नफरत की कोई बाते होती
मस्ती मजाक से भरी राते होती

दुख सुख में सब साथ रहते थे
अजनबी को भी अपना कहते थे

शहर में वो सुख नहीं मिलता हैं
जो गांव की गलियों में मिलता हैं

गांव के लोग रहते गरीब हैं
लेकिन सबसे ज़्यादा अमीर हैं

शहर के पढ़ लिखकर लोग प्रोफेसर बन जाया करते हैं
गांव के लोग फिर भी इनसे ज्यादा ज्ञानी के कहलाया करते हैं

गांव में अपनों का प्यार बसता है
शहर के लोगों में वह कहां मिलता है

वो गाँव गरीब है तो उन्हें कम मत समझना
वह सब कुछ कर सकते हैं उनसे मत उलझना

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