कविताअतुकांत कविता
# चित्राक्षरी 15,2,21
*याद बहुत आए*
कच्ची पक्की पगडंडियाँ
नीम पीपल की घनी छाँव
याद बहुत आए है मुझको
दूर बसा वो छोटा सा गाँव
छोटा प्यारा घर वो पुराना
उखड़ी उखड़ी सी दीवार
याद बहुत आए है मुझको
टूटी छत से होती बरसात
वो बदरंग जर्जर दरवाज़ा
मानो जोहे किसी की बाट
याद बहुत आए है मुझको
लटकती कुंजी की पुकार
खड़ी सदा शान से रहती
इकलौती सायकल महान
याद बहुत आए है मुझको
बाबा संग जाना ससम्मान
अलमारी के नाम सुने थे
कपड़ों की ना थी भरमार
याद बहुत आए है मुझको
डोरीपे लटके बस दो चार
आँगन का तुलसी क्यारा
गिलकी तुरई की वो बेलें
याद बहुत आए है मुझको
पिछवाड़े का मक्की खेत
चौपाल पे होते गप्पे शप्पे
चाची भाभी की ठिठौली
याद बहुत आए है मुझको
अधनङ्गे टाबरों की टोली
बड़ी सायकल व मैं छोटा
चुपके से वो कैंची चलाना
याद बहुत आए है मुझको
बाबा के डंडे से डर जाना
आज मेरा गाँव मरघट सा
पनघट चौबारे सब हैं सूने
याद बहुत आए है मुझको
अपना अल्हड़ सा बचपन
सरला मेहता