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सावन की सौगात - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

सावन की सौगात

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#सा रे गा मा पा (अधूरी कहानी ) भाग 1

*सावन की सौगात*

ये बूंदे सावन की आज बरसी
के दिल के अरमाँ मचल रहे हैं

मौन तुम्हारा, चाहे रहा हो
शब्द लबों में, समा गए हो
नयनों की भाषा ने बयाँ किया है।
ये बूंदे,,,
आते व जाते, मिलते रहे हो
मैंने न जाना,तूने न जाना
पहचान रूहानी होती रही है
ये बूंदे,,,,
नशीली आँखे, हैं झील जैसी
रेशमी कुंतल, जमीं को छूते
के मोती सी बूंदे ये टपक रही है
ये बूंदे,,,
अधूरी ये इक, प्रेम कहानी
दो दिलों ने, दिलों में जानी
के सावन में सुहानी बेला है आई
ये बूंदे,,,,
मिलन की बेला, बूंदे हैं लाई
मैं और तुम, हम हो जाएं
के फ़रिश्ता मानो मिल गया है
ये बूंदे,,,,
ख्वाबों में ही, सनम हम हम
शिकवे भी सब, हम भूल जाएं
के हसरतें हमारी लहक रही हैं
ये बूंदे,,,
छोड़ो शरम,अब क़रीब आओ
श्वासों से, एहसास कराओ
के काले बदरा घुमड़ रहे हैं
ये बूंदे
आज हमें ये, लम्हें मिले हैं
तारे ये देखो, सुनने लगे हैं
के चाँद भी देखो उतर रहा है
ये बूंदे,,,
सिहरते लब, कुछ कह ना पाए
इक दूजे में हम,आओ खो जाएँ
के छोटू की चाय हमें बुला रही है।
ये बूंदे,,,
सरला मेहता

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